दो न्याय अगर तो आधा दो,<br /><br />पर, इसमें भी यदि बाधा हो,<br />तो दे दो केवल पाँच ग्राम,<br /><br />रक्खो अपनी धरती तमाम।<br />हम वहीं खुशी से खायेंगे,<br /><br />परिजन पर असि न उठायेंगे!<br /><br /><br />दुर्योधन वह भी दे ना सका,<br /><br />आशिष समाज की ले न सका,<br />उलटे, हरि को बाँधने चला,<br /><br />जो था असाध्य, साधने चला।<br />जन नाश मनुज पर छाता है,<br /><br />पहले विवेक मर जाता है।<br /><br /><br />हरि ने भीषण हुंकार किया,<br /><br />अपना स्वरूप-विस्तार किया,<br />डगमग-डगमग दिग्गज डोले,<br /><br />भगवान् कुपित होकर बोले-<br />'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,<br /><br />हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।<br /><br /><br />यह देख, गगन मुझमें लय है,<br /><br />यह देख, पवन मुझमें लय है,<br />मुझमें विलीन झंकार सकल,<br /><br />मुझमें लय है संसार सकल।<br />अमरत्व फूलता है मुझमें,<br /><br />संहार झूलता है मुझमें।

Ramdhari Singh &#39;Dinkar&#39;