दो नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ अगर तो आधा दो,
पर, इसमें à¤à¥€ यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाà¤à¤š गà¥à¤°à¤¾à¤®,
रकà¥à¤–ो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खà¥à¤¶à¥€ से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
दà¥à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤§à¤¨ वह à¤à¥€ दे ना सका,
आशिष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाà¤à¤§à¤¨à¥‡ चला,
जो था असाधà¥à¤¯, साधने चला।
जन नाश मनà¥à¤œ पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
हरि ने à¤à¥€à¤·à¤£ हà¥à¤‚कार किया,
अपना सà¥à¤µà¤°à¥‚प-विसà¥à¤¤à¤¾à¤° किया,
डगमग-डगमग दिगà¥à¤—ज डोले,
à¤à¤—वानॠकà¥à¤ªà¤¿à¤¤ होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मà¥à¤à¥‡,
हाà¤, हाठदà¥à¤°à¥à¤¯à¥‹à¤§à¤¨! बाà¤à¤§ मà¥à¤à¥‡à¥¤
यह देख, गगन मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ लय है,
यह देख, पवन मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ लय है,
मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ विलीन à¤à¤‚कार सकल,
मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ लय है संसार सकल।
अमरतà¥à¤µ फूलता है मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚,
संहार à¤à¥‚लता है मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚।
— Ramdhari Singh 'Dinkar'