पहली बार व्हिस्की उठा कर होठों तक लायी थी तो वही वनगंध साँसों में भर गयी थी. जबां पर सिंगल माल्ट का पहला स्वाद पहली बार चूमने की तरह था, अतुलनीय. याद का दहकता जंगल मुझे अपने आगोश में भर रहा था, हौले हौले, शायद वो अपनी बाहें कस कर मुझे तोड़ डालता. यक़ीनन, मुझे अफ़सोस न होता. पैरों के पास कोई खुशबूदार बेल उग रही थी और महसूस हो रहा था कि हर छोटे सिप के साथ मैं दार्जलिंग का वही जंगल होती जा रही हूँ कि जिसके बादलों में भीगे तने पर कोई अजनबी अपने होठ रखने की हसरत लिए हर साल लौट आना चाहेगा. चाहने और लौट आने के बीच उलझा हुआ शामें सिंगल माल्ट में डुबो कर आग लगाता रहेगा.